यह एक ऐसा पावन पर्व है जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को पूरा आदर और सम्मान देता है। सगे भाई बहन के अतिरिक्त अनेक भावनात्मक रिश्ते भी इस पर्व से बँधे होते हैं जो धर्म, जाति और देश की सीमाओं से परे हैं। रक्षाबन्धन का पर्व भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री के निवास पर भी मनाया जाता है। सनातन धर्म में हर साल सावन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन को श्रावण पूर्णिमा भी कहा जाता है।
वहीं भाई अपने बहनों को गिफ्ट्स देते हैं। आशीर्वाद लेते हैं और जीवनभर रक्षा करने का वचन देते हैं। दृक पंचांग के अनुसार, इस साल रक्षाबंधन पर भद्राकाल और पंचक दोनों लग रहा है। ज्योतिष में इस दौरान भाई को राखी बांधना अशुभ माना गया है। आइए जानते हैं रक्षाबंधन 2024 की सही तिथि और राखी बांधने का शुभ-अशुभ मुहूर्त –
रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त
19 अगस्त 2024 को शुभ मुहूर्त भद्रा समाप्ति का समय दोपहर 1:30 बजे है , जिससे इस समय के बाद राखी समारोह शुरू करना सुरक्षित है। भद्रा चरण का अंतिम भाग यानी भद्रा पूँछ, सुबह 9:51 बजे से 10:53 बजे तक रहेगा, उसके बाद भद्रा मुख सुबह 10:53 बजे से दोपहर 12:37 बजे तक रहेगा।
इस साल 19 अगस्त, सोमवार को रक्षाबंधन मनाया जा रहा है। इस साल रक्षाबंधन के दिन भद्रा सुबह 5 बजकर 53 मिनट से आरंभ हो जाएगी, जो दोपहर 1 बजकर 30 मिनट पर समाप्त होगी।
इस बार मिल रहे है रक्षाबंधन पर 3 शुभ योग
इस साल रक्षाबंधन पर 3 शुभ योग बन रहे हैं.
उस दिन शोभन योग पूरे दिन रहेगा | वहीं सर्वार्थ सिद्धि योग प्रात: 05:53 AM से 08:10 PM तक है, साथ ही रवि योग 05:53 AM से 08:10 PM तक है |
क्या है रक्षाबंधन का महत्व जाने
रक्षाबंधन एक प्रमुख भारतीय त्यौहार है, जिसे भाई-बहन के बीच के अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक माना जाता है। रक्षाबंधन का शाब्दिक अर्थ है “रक्षा का बंधन।” इस दिन, बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बाँधती हैं और उनकी लंबी उम्र और खुशहाली की कामना करती हैं। बदले में, भाई अपनी बहनों की रक्षा करने का वचन देते हैं और उन्हें उपहार देते हैं।
रक्षाबंधन मनाने की कई कथाएँ प्रचलित हैं:
द्रौपदी और श्रीकृष्ण की कथा: महाभारत के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया, तो उनके अंगुली में चोट लग गई थी। द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर उनकी अंगुली पर बांध दिया था। इसके बदले में, श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की हर संकट में रक्षा करने का वचन दिया था। इसी कारण, श्रीकृष्ण ने चीर हरण के समय द्रौपदी की लाज बचाई।
इंद्र और इंद्राणी की कथा: पुराणों के अनुसार, देवताओं और दानवों के बीच युद्ध में जब इंद्रदेव हारने लगे, तो इंद्राणी ने भगवान विष्णु से रक्षा का उपाय पूछा। विष्णु ने रक्षा सूत्र बनाकर उसे इंद्राणी को दिया, जिसे इंद्राणी ने इंद्र की कलाई पर बांध दिया। इसके बाद, इंद्रदेव युद्ध में विजय प्राप्त की।
रानी कर्णावती और हुमायूँ की कथा: मध्यकालीन भारत की एक कथा के अनुसार, चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर अपनी रक्षा की गुहार लगाई थी। हुमायूँ ने राखी के सम्मान में कर्णावती की रक्षा के लिए अपनी सेना भेज दी थी।
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रक्षाबंधन के कुछ और खास शुभ मुहूर्त
रक्षा बन्धन अनुष्ठान का समय – 01:30 PM से 09:08 PM
अवधि – 07 घण्टे 38 मिनट्स
रक्षा बन्धन के लिये अपराह्न का मुहूर्त – 01:43 PM से 04:20 PM
अवधि – 02 घण्टे 37 मिनट्स
रक्षा बन्धन के लिये प्रदोष काल का मुहूर्त – 06:56 PM से 09:08 PM
अवधि – 02 घण्टे 11 मिनट्स
रक्षा बन्धन भद्रा अन्त समय – 01:30 PM
रक्षा बन्धन भद्रा पूँछ – 09:51 PM से 10:53 PM
रक्षा बन्धन भद्रा मुख – 10:53 PM से 12:37 PM
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – अगस्त 19, 2024 को 03:04 PM बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – अगस्त 19, 2024 को 11:55 PM बजे
रक्षाबंधन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य:
प्राचीन परंपरा: रक्षाबंधन का त्यौहार प्राचीन काल से मनाया जाता है, और इसके उल्लेख हिंदू धर्मग्रंथों और पौराणिक कथाओं में मिलते हैं, जैसे महाभारत और वेदों में।
सुरक्षा का प्रतीक: इस त्यौहार का मुख्य विचार सुरक्षा से जुड़ा है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं, जो उनके भाई की लंबी उम्र और सुरक्षा की कामना का प्रतीक होती है। बदले में, भाई अपनी बहनों की सुरक्षा करने का वचन देते हैं।
ऐतिहासिक महत्व: रक्षाबंधन का इतिहास केवल भाई-बहन के रिश्ते तक सीमित नहीं रहा है। उदाहरण के लिए, चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर अपनी रक्षा की गुहार लगाई थी, और हुमायूँ ने इसे सम्मानपूर्वक स्वीकार किया और उनकी रक्षा के लिए सेना भेजी।
भारत के बाहर भी: रक्षाबंधन केवल भारत में ही नहीं, बल्कि नेपाल, मॉरीशस, और फिजी जैसे देशों में भी मनाया जाता है, जहाँ भारतीय समुदाय रहता है।
रक्षाबंधन के विभिन्न नाम: भारत के विभिन्न हिस्सों में रक्षाबंधन को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे बंगाल में इसे ‘श्रावणी’ या ‘सलोनो’ कहा जाता है, जबकि महाराष्ट्र में इसे ‘नारियल पूर्णिमा’ के नाम से भी मनाया जाता है।
सिर्फ भाई-बहन तक सीमित नहीं: कुछ स्थानों पर, महिलाएँ अपने परिवार के सदस्यों, दोस्तों, या यहाँ तक कि प्रकृति (जैसे पेड़ों) को भी राखी बांधती हैं, जिससे उनके जीवन में सुरक्षा और समृद्धि की कामना की जाती है।
रक्षाबंधन, अपने सांस्कृतिक और भावनात्मक महत्व के कारण, सदियों से भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करने का प्रतीक बना हुआ है।
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